बोलो हिन्दुस्तान


"""""""""""""""""""""""""""""""
बोलो  हिन्दुस्तान  कहाँ तक,
कितनी  हिंसा  और  सहोगे । 
आज अगर चुप बैठे तो कल,
कहने   लायक  नहीं  रहोगे ।  
 
बारूदी   शब्दों   की  भाषा,
किसनेआखिर क्यूँ बोली है ।
अंबर   ने   बरसाये   पत्थर,
धरती  ने  उगली  गोली  है । 

प्यार के  गंगाजल में   कैसे,
नफरत का  तेज़ाब घुला है ।
गौतम, गाँधी का  ये आंगन,
सुबह लहू से धुला मिला है ।

किस  षड्यंत्री  ने  फेंकी  है, 
षड्यंत्रों   की   ये  चिंगारी ।
गलियों, सड़कों, चौराहों  पे,
मौत   नाचती  है   हत्यारी ।

यहीं जन्म लेकर के आखिर,
कहो अकारण क्यूँ मर जाएं ।
क्यूँ अपना घर,गली,ये बस्ती,
छोड़ वतन हम कहाँपे जायें ।

कहाँपे जायें ?  कहाँपे जायें ?
कहाँपे जायें ?  कहाँपे जायें ?
                rjsuvichar. blogspot. com

Comments

Popular Posts